कक्षा 12 हिंदी कर्ण का चरित्र चित्रण ,

 



कर्ण का चरित्र चित्रण

 महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक, कर्ण, एक आदर्श नायक के रूप में उभरते हैं। वे वीरता, दानशीलता, और मित्रता के प्रतीक हैं। कर्ण का जीवन त्रासदी और संघर्षों से भरा हुआ था। उनका जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था, परंतु वे एक रथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा द्वारा पाले गए। इस वजह से उन्हें समाज में सूतपुत्र का दर्जा मिला और इस कारण कई बार अपमान सहना पड़ा।

कर्ण स्वभाव से ही अत्यंत पराक्रमी और साहसी थे। उन्होंने परशुराम से अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया, परंतु जब परशुराम को उनके सूतपुत्र होने का पता चला, तो उन्होंने कर्ण को शाप दे दिया कि युद्ध के समय वे अपने ज्ञान को भूल जाएंगे। यह शाप कर्ण के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना साबित हुआ।

कर्ण का जीवन धर्म और अधर्म के बीच उलझा हुआ था। वे दुर्योधन के सच्चे मित्र थे और उनकी सहायता के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा बनाया, जिसके बदले में कर्ण ने दुर्योधन के प्रति आजीवन निष्ठा और कृतज्ञता दिखाई। यद्यपि कर्ण को यह ज्ञात हो गया था कि वे पांडवों के बड़े भाई हैं, फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कौरवों का साथ दिया।

कर्ण की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी दानशीलता थी। वे एक महान दानी थे और कभी भी किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते थे। यह गुण उनके अंत का कारण बना, जब भगवान इंद्र ने एक ब्राह्मण का रूप धारण कर उनसे उनका कवच और कुंडल दान में ले लिया। इसके बावजूद, कर्ण ने इसे बिना किसी संकोच के दान कर दिया।

कर्ण के चरित्र में साहस, दानशीलता, और निष्ठा के साथ-साथ कई त्रासदियां और दुविधाएं भी शामिल थीं। उनका जीवन एक संघर्षपूर्ण जीवन था, जिसमें उन्होंने अपने धर्म और अपने कर्तव्यों का पालन करने का हर संभव प्रयास किया, भले ही उन्हें इसके लिए कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो।

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